लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> मन की शक्तियाँ

मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

368 पाठक हैं

स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं

मन की शक्तियाँ

मन

सारे युगों से, संसार के सब लोगों का अलौकिक घटनाओं में विश्वास चला आ रहा है। हम सभी ने अनेक अद्भुत चमत्कारों के बारे में सुना है और हममें से कुछ ने उनका स्वयं अनुभव भी किया है। इस विषय का प्रारम्भ आज मैं स्वयं देखे हुए चमत्कारों को बतलाकर करुँगा।

मैंने एक बार ऐसे मनुष्य के बारे में सुना जो किसी के मन के प्रश्न का उत्तर सुनने के पहले ही बता देता था। और मुझे यह भी बतलाया गया कि वह भविष्य की बातें भी बताता है।

मुझे उत्सुकता हुई और अपने कुछ मित्रों के साथ मैं वहाँ पहुँचा। हममें से प्रत्येक ने पूछने का प्रश्न अपने मन में सोच रखा था। ताकि गलती न हो, हमने वे प्रश्न कागज पर लिखकर जेब में रख लिये थे। ज्योंही हममें से एक वहाँ पहुँचा, त्योंही उसने हमारे प्रश्न औऱ उनके उत्तर कहना शुरू कर दिया। फिर उस मनुष्य ने कागज पर कुछ लिखा, उसे मोड़ा और उसके पीछे मुझे हस्ताक्षर करने के लिए कहा, और बोला, “इसे पढ़ो मत, जेब में रख लो, तब तक कि मैं इसे फिर न माँगूं।” इस तरह उसने हरएक से कहा। बाद में उसने हम लोगों को हमारे भविष्य की कुछ बातें बतलायीं। फिर उसने कहा, “अब किसी भी भाषा का कोई शब्द या वाक्य तुम लोग अपने मन में सोच लो।”

मैंने संस्कृत का एक लम्बा वाक्य सोच लिया। वह मनुष्य संस्कृत बिलकुल नहीं जानता था। उसने कहा, “अब अपनी जेब का कागज निकालो।” कैसा आश्चर्य। वही संस्कृत का वाक्य उस कागज पर लिखा था। और नीचे यह भी लिखा था कि ‘जो कुछ मैंने इस कागज पर लिखा है, वही यह मनुष्य सोचेगा।’ औऱ यह बात उसने एक घण्टा पहले ही लिख दी थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book